यवन प्रिय क्या था : Yavan Priya Kya Tha

यवन प्रिय क्या था : Yavan Priya Kya Tha

यवन प्रिय क्या था : Yavan Priya Kya Tha – “यवन प्रिय” एक पुरानी संस्कृति थी जिसमें व्यक्ति किसी विशेष विषय या व्यक्ति के प्रति आकर्षण या प्रेम की ओर खिंचाव महसूस करता था। यह शब्द संस्कृत में है और इसका हिंदी में “यवन” यानी यूनानी और “प्रिय” यानी प्रिय का संयोजन होता है।

यवन प्रिय क्या था : Yavan Priya Kya Tha
यवन प्रिय क्या था : Yavan Priya Kya Tha

यवन प्रिय शब्द इस्लामिक सूफी और पारंपरिक सूफी साहित्य में विशेष रूप से प्रयोग किया जाता है, जहां भगवान के प्रति शानदार तरीके से प्रेम की भावना को व्यक्त करने के लिए उपयोग किया जाता है। यहां यह भावना भगवान के प्रति आदर्श प्रेम का रूप दिखाई देती है, जैसे कि भगवान के प्रति व्यक्ति का प्रेम किसी मित्र के प्रति प्रेम के समान होता है।

यह शब्द साधना, भक्ति और आत्मा के प्रति शानदार तरीके से प्रेम को मानव और भगवान की भावना को दर्शाता है। यह आध्यात्मिक विद्यालय में प्रयोग किया जाता है ताकि भगवान के प्रति आस्था और सर्वोच्च प्रेम की प्रेरणा मिल सके।

भारतीय प्राचीन ग्रंथों में ‘यवन प्रिय’ शब्द का अर्थ क्या है | Bhartiya Prachin Granthon Me ‘Yavan Priya’ Ka Arth Kya Hain?

‘यवन प्रिय’ शब्द प्राचीन भारतीय ग्रंथों में कई अर्थों में प्रयुक्त होता है, लेकिन विशेष रूप से यह अर्थ प्रमुख है:

पहली शताब्दी ईसा पूर्व में पश्चिम के साथ भारत का व्यापार अच्छी तरह से विकसित था। रोमन राष्ट्रवादियों ने विरोध किया कि 22 ईस्वी में पूर्व से गोल मिर्च या काली मिर्च खरीदने पर बहुत ही ज्यादा खर्च कर रहा है। चूँकि पश्चिमी लोग भारतीय मिर्च को इतना पसंद करते थे, इसलिए संस्कृत में गोल मिर्च या काली मिर्च के लिए शब्द “यवन प्रिय” बन गया।

‘यवन प्रिय’ शब्द प्राचीन भारतीय ग्रंथों में कई अर्थों में प्रयुक्त होता है, उनमे से यह अर्थ भी है:

  • यूनानी या यवन सभ्यता का समर्थन: इस अर्थ में ‘यवन प्रिय’ शब्द का उपयोग उस समय के भारतीय ग्रंथों में होता था जब यूनानी सभ्यता की विनम्रता और विज्ञान को मान्यता दी जा रही थी। ‘यवन’ शब्द यूनान के लोगों को संदर्भित करता था और ‘यवन प्रिय’ से इसका अर्थ होता था कि कोई व्यक्ति यूनानी सभ्यता की बातों को मानता था और उनके ज्ञान और कृतियों का प्रशंसा करता था।
  • पश्चिमी आदर्शों या विचारों के प्रति प्रेम: ‘यवन प्रिय’ का इस्तेमाल विचारों, विज्ञान, तंत्रों, और शैलियों के प्रति प्रेम को संकेतित करने के लिए भी किया जा सकता था, जो पश्चिमी दुनिया से आये आदर्शों या विचारों का प्रशंसा करते थे।
  • यूनानी भाषा के प्रति आकर्षण: ‘यवन प्रिय’ शब्द का उपयोग किसी के यूनानी भाषा के प्रति आकर्षण या उसकी भाषा को सीखने या उसके साथ व्यापारिक या सांस्कृतिक संवाद करने की प्रतिष्ठा को दर्शाने के लिए भी किया जा सकता था।

प्राचीन संस्कृत ग्रंथों में वर्णित यवनप्रिया का अर्थ | Prachin Sanskrit Granthon Me Varnit ‘Yavanpriya’ Ka Arth?

प्राचीन भारतीय समाज में काली मिर्च, जिसे यवनप्रिया भी कहा जाता है, की मसाले के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका थी। यूनानी व्यापारी, जिन्हें भारत में “यवन” के नाम से जाना जाता है, दक्षिण भारत से बड़ी मात्रा में काली मिर्च की खरीदारी करते थे क्योंकि उन्हें इसमें बहुत रुचि थी। भारत अपने मसालों के लिए बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध था जिसके कारण उस समय मसाला व्यापार के लिए भारत एक पसंदीदा स्थान था।

परिणामस्वरूप, यवनप्रिया नाम, जो “यवन” शब्दों को जोड़ता है, जो विदेशी व्यापारियों के लिए है, और “प्रिया”, जिसका अर्थ है स्नेह या पसंद, प्रयोग में आया। रोमनों के बीच काली मिर्च की लोकप्रियता के कारण, इस उपनाम ने मसाले के प्रति उनके प्रेम को पूरी तरह से दर्शाया।

दक्षिण भारत और रोमन साम्राज्य के बीच इत्र, रत्न, हाथीदांत और बढ़िया लिनेन के व्यापार में काली मिर्च जैसे मसालों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रसोई में एक प्रिय और महत्वपूर्ण घटक के रूप में अपनी परंपरा को ध्यान में रखते हुए, काली मिर्च आज भी भारतीय व्यंजनों का मुख्य आधार है।

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